हिंदी कहानी- अकबरी लोटा | Hindi Story- Akbari Lota

Anmol Hindi
9 min readApr 28, 2020

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नमस्कार, आज हम एक ऐसी कहानी (Hindi story) लेकर आए हैं जिससे आपको काफी कुछ सीखने को मिलेगा और भला वह कहानी ही कैसी जिससे हमें कुछ सीखने को ना मिले, तो चलिए इसे विस्तार से पढ़ते हैं-

काशी के ठठेरी बाजार में लाला श्यामलाल नाम के एक व्यक्ति रहते थे वहां पर उनका मकान था उनके पास खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी।
नीचे की दुकानों से ₹100 महीने के करीब किराया भी निकल आता था।
अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते थे, पर ₹250 तो एक साथ कभी देखने के लिए भी नहीं मिलते थे।
इसलिए जब उनकी पत्नी ने एक दिन एकाएक ₹250 की मांग पेश की, तो उनका जी एक बार जोर से सनसनाया और फिर बैठ गया।
उनकी यह दशा देखकर पत्नी ने कहा-”डरिए मत, आप देने में असमर्थ हो तो मैं अपने भाई से मांग लूं?”

लाला श्यामलाल तिलमिला उठे उन्होंने रोब के साथ कहा-”अजी हटो ₹250 के लिए भाई से भीख मांगोगी, मुझसे ले लेना।
उनकी पत्नी ने कहा- लेकिन मुझे इसी जिंदगी में चाहिए!
लाला श्यामलाल ने कहा- अजी इसी सप्ताह में ले लेना। उनकी पत्नी ने कहा- सप्ताह से आपका तात्पर्य 7 दिन से है या 7 वर्ष से?
लाला श्यामलाल ने रोब के साथ खड़े होते हुए कहा- आज से सातवें दिन मुझसे ₹250 ले लेना।
लेकिन जब 4 दिन ज्यों- त्यों में ऐसे ही बीत गए और रुपयों का कोई प्रबंध ना हो सका। तब उन्हें चिंता होने लगी।
प्रश्न अपनी प्रतिष्ठा का था अपने ही घर में अपनी साख का था।
देने का पक्का वादा करके अगर अब दे ना सके तो अपने मन में वह क्या सोचेगी? उसकी नजरों में उसका क्या मूल्य रह जाएगा? अपनी वाहवाही कि सैकड़ों गाथाएं सुना चुके थे।
अब जो एक काम पड़ा तो चारों खाने चित हो रहे।
यहां पहली बार उसने मुंह खोलकर कुछ रुपयों का सवाल किया था इस समय अगर दुम दबा कर निकल भागते हैं तो फिर उसे क्या मुंह दिखलाएंगे?

खैर, 1 दिन और बीत गया। पांचवे दिन घबराकर उन्होंने बिलवासी मिश्र को अपनी विपदा सुनाई।
संयोग कुछ ऐसा बिगड़ा था कि बिलवासी जी भी उस समय बिल्कुल खुक्ख थे।
उन्होंने कहा- मेरे पास है तो नहीं पर मैं कहीं से मांग कर लाने की कोशिश करूंगा और अगर मिल गया तो कल शाम को तुमसे मकान पर मिलूंगा।
अब वही शाम आज थी हफ्ते का अंतिम दिन। कल ₹250 या तो गिन देना है या सारी हेकड़ी से हाथ धोना है यह सच है कि कल रुपया ना आने पर उनकी पत्नी उन्हें कहेगी तो कुछ नहीं केवल जरा सा हंस देगी पर वह कैसी हंसी होगी कल्पना मात्र से श्यामलाल में मरोड़ पैदा हो जाता था।

आज शाम को बिलवासी मिश्र को आना था यदि नहीं आए तो? या कहीं रुपए का प्रबंध ना कर सके तो?
लाला श्यामलाल इसी उधेड़बुन में पड़े छत पर टहल रहे थे।
कुछ प्यास मालूम हुई उन्होंने नौकर को आवाज दी नौकर नहीं था खुद उनकी पत्नी पानी लेकर आई।
वह पानी तो जरूर लाई पर गिलास लाना भूल गई केवल लोटे में पानी लिए वह प्रकट हुई।
फिर लोटा भी संयोग से वह जो अपनी बेढन्गी सूरत के कारण लाला श्यामलाल को सदा से नापसंद था।
था तो नया, साल दो साल का ही बना था पर कुछ ऐसी गढ़न उस लोटे की थी कि उसका बाप डमरु और मां चिलम रही हो।

लाला ने लोटा ले लिया, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बोला अपनी पत्नी का अदब मानते थे मानना ही चाहिए।
इसी को सभ्यता कहते हैं जो पति अपनी पत्नी का ना हुआ, वह पति कैसा? फिर उन्होंने यह भी सोचा कि लोटे में पानी दे, तब भी गनीमत है, अभी अगर चुं कर देता हूं तो बाल्टी में भोजन मिलेगा तब क्या करना बाकी रह जाएगा?

लाला अपना गुस्सा पीकर पानी पीने लगे। उस समय वे छत की मुंडेर के पास ही खड़े थे जिन बुजुर्गों ने पानी पीने के संबंध में यह नियम बनाए थे कि खड़े खड़े पानी ना पियो, सोते समय पानी ना पियो, दौड़ने के बाद पानी ना पियो उन्होंने पता नहीं कभी यह भी नियम बनाया या नहीं की छत की मुंडेर के पास खड़े होकर पानी ना पियो।
जान पड़ता है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर उन लोगों ने कुछ नहीं कहा है।
लाला श्यामलाल मुश्किल से दो घूंट पी पाए होंगे कि ना जाने कैसे उनका हाथ हिल उठा और लोटा छूट गया।
लोटे ने दाएं बाएं ना देखा, वह नीचे गली की ओर चल पड़ा।
अपने वेग में उल्का को लजाता हुआ वह आंखों से ओझल हो गया। किसी जमाने में न्यूटन नाम के किसी खुराफाती ने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति नाम की एक चीज की खोज करी थी।
कहना ना होगा कि यह सारी शक्ति इस समय लोटे के पक्ष में थी।
लाला को काटो तो बदन में खून नहीं, ऐसी चलती हुई गली में ऊंचे तिमंजिलें से भरे हुए लौटे का गिरना हंसी-खेल नहीं।
यह लोटा ना जाने किस अनाधिकारी के झोपड़े पर काशीवास का संदेश लेकर पहुंचेगा।
कुछ हुआ भी ऐसा ही गली में जोर का हल्ला उठा लाला श्यामलाल जब तक दौड़कर नीचे उतरे तब तक एक भारी भीड़ उनके आंगन में घुस आई।
लाला श्यामलाल ने देखा कि उस भीड़ में प्रधान पात्र एक अंग्रेज हैं जो नखसिख से भीगा हुआ है और जो अपने एक पैर को हाथ से चलाता हुआ दूसरे पैर पर नाच रहा है उसी के पास अपराधी लोटे को भी देख कर लाला श्यामलाल जी ने फौरन दो और दो जोड़कर स्थिति को समझा लिया।
गिरने के पूर्व लोटा एक दुकान के सायबान से टकराया वहां टकराकर उस दुकान पर खड़े उस अंग्रेज को उसने स्नान कराया और फिर उसी के बूट पर आ गिरा।

उस अंग्रेज को जब मालूम हुआ कि लाला श्यामलाल ही उस लोटे के मालिक हैं तब उसने केवल एक काम किया अपने मुंह को खोलकर खुला छोड़ दिया।
लाला श्यामलाल को आज ही यह मालूम हुआ की अंग्रेजी भाषा में गालियों का ऐसा प्रकांड कोश है।
इसी समय बिलवासी मिश्र भीड़ को चीरते हुए आंगन में आते दिखाई पड़े।
उन्होंने आते ही पहला काम यह किया कि, अंग्रेज को छोड़कर और जितने आदमी आंगन में घुस आए थे, सब को बाहर निकाल दिया फिर आंगन में कुर्सी रखकर उन्होंने साहब से कहा- आपके पैरों में शायद कुछ चोट आ गई है अब आप आराम से कुर्सी पर बैठ जाइए।

साहब बिलवासी जी को धन्यवाद देते हुए बैठ गए और लाला श्यामलाल की ओर इशारा करके बोले- आप इस व्यक्ति को जानते हैं?
“बिल्कुल नहीं! और मैं ऐसे आदमी को जानना भी नहीं चाहता जो निरीह राह चलतो पर लोटे से वार करे।”
“मेरी समझ में ‘ही इज ए डेंजरस ल्युनाटिक’ (यानी यह खतरनाक पागल है)”
“नहीं मेरी समझ में ‘ही इज ए डेंजरस क्रिमिनल’ (यानी या खतरनाक मुजरिम है)”
परमात्मा ने लाला श्यामलाल की आंखों को इस समय कहीं देखने के साथ खाने की भी शक्ति दे दी होती तो यह निश्चय है कि अब तक बिलवासी जी को वे अपनी आंखों से खा चुके होते।
वे कुछ समझ नहीं पाते कि इस बिलवासी जी को इस समय क्या हो गया है।
साहब ने बिलवासी जी से पूछा “क्या करना चाहिए?”
“पुलिस में इस मामले की रिपोर्ट कर दीजिए जिससे यह आदमी फौरन हिरासत में ले लिया जाए?”
“पुलिस स्टेशन है कहां?”
“पास ही है चलिए मैं बताऊं”
“चलिए!”
“अभी चला। आपकी इजाजत हो तो पहले मैं इस लोटे को इस आदमी से खरीद लूं, क्यों जी बेचोंगे? मैं ₹50 तक इसके दाम दे सकता हूं।
लाला श्यामलाल तो चुप रहे पर साहब ने पूछा- “इस रद्दी लोटे के आप ₹50 क्यों दे रहे हैं?”
आप इस लोटे को रद्दी बताते हैं? आश्चर्य! मैं तो आपको एक विज्ञ और सुशिक्षित आदमी समझता था।
“आखिर बात क्या है, कुछ बताइए भी!”
“जनाब यह एक ऐतिहासिक लोटा जान पड़ता है। जान क्या पड़ता है, मुझे पूरा विश्वास है। यह वह प्रसिद्ध अकबरी लोटा है जिसकी तलाश में संसार-भर के म्यूजियम परेशान हैं।”
“यह बात?”
“जी, जनाब। 16वी शताब्दी की बात है बादशाह हुमायूं शेरशाह से हार कर भागा था और सिंध के रेगिस्तान में मारा- मारा फिर रहा था!
एक अवसर पर प्यास से उसकी जान निकल रही थी उस समय एक ब्राह्मण ने इसी लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई थी हुमायूं के बाद अकबर ने उस ब्राह्मण का पता लगाकर उससे इस लोटे को ले लिया और इसके बदले में उसे इस प्रकार के 10 सोने के लोटे प्रदान किए यह लोटा सम्राट अकबर को बहुत प्यारा था इसी से इसका नाम अकबरी लोटा पड़ा!

वह बराबर इसी से वजू करता था सन् 57 तक इस के शाही घराने में रहने का पता है। पर इसके बाद लापता हो गया। कोलकाता के म्यूजियम में इसका प्लास्टर का मॉडल रखा हुआ है पता नहीं यह लोटा इस आदमी के पास कैसे आया?
म्यूजियम वालों को पता चले तो फैंसी दाम देकर खरीद ले जाएं।
इतने विवरण को सुनते-सुनते साहब की आंखों पर लोग और आश्चर्य का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह कौड़ी के आकार से बढ़कर पकौड़ी के आकार की हो गई।
उसने बिलवासी जी से पूछा- “तो आप इस लोटे का क्या करेंगे?”
“मुझे पुरानी और ऐतिहासिक चीजों के संग्रह का शौक है।”
“मुझे भी पुरानी और ऐतिहासिक चीजों के संग्रह का शौक है। जिस समय यह लोटा मेरे ऊपर गिरा था, उस समय मैं यही कर रहा था उस दुकान से पीतल की कुछ पुरानी मूर्तियां खरीद रहा था।”
“जो कुछ हो, लोटा में ही खरीदूंगा!”
“वाह, आप कैसे खरीदेंगे, मैं खरीदूंगा, यह मेरा हक है।”
“हक है?”
“जरूर हक है यह बताइए कि इस लोटे के पानी से आप ने स्नान किया या मैंने?”
“आपने।”
“वह आपके पैरों पर गिराया मेरे?”
“आपके।”
“अंगूठा उसने आपका भुरता किया या मेरा?”
“आपका।”
“इसलिए उसे खरीदने का हक मेरा है।”
“यह सब बकवास है। दाम लगाइए, जो अधिक दे, वह ले जाए।”
“यही सही। आप इसका ₹50 लगा रहे थे, मैं सो देता हूं।”
“मैं डेढ़ सौ देता हूं”
“मैं दो सौ देता हूं।”
“अजी मैं ढाई सौ देता हूं।”यह कहकर बिलवासी जी ने ढाई सौ के नोट लाला झामलाल के आगे फेंक दिए।
साहब को भी ताव आ गया उसने कहा- “आप ढाई सौ देते हैं, तो मैं पांच सौ देता हूं। चलिए अब।”
बिलवासी जी अफसोस के साथ अपने रुपए उठाने लगे, मानव अपनी आशाओं की लाश उठा रहे हों।
साहब की ओर देखकर उन्होंने कहा- “लोटा आपका हुआ, ले जाइए, मेरे पास ढाई सौ से अधिक नहीं हैं।”
यह सुनते ही साहब के चेहरे पर प्रसन्नता की कुंची गिर गई।
उसने झपटकर लोटा लिया और बोला- “अब मैं हंसता हुआ अपने देश लौटूंगा। मेजर डगलस की डिंग सुनते-सुनते मेरे कान पक गए थे।”
“मेजर डगलस कौन हैं?”
“मेजर डगलस मेरे पड़ोसी हैं पुरानी चीजों के संग्रह करने में मेरी उनकी होड़ रहती है। गत वर्ष में हिंदुस्तान आए थे और यहां से जहांगीरी अंडा ले गए थे।”
“जहांगीरी अंडा?”
“हां, जहांगीरी अंडा। मेजर डगलस ने समझ रखा था कि हिंदुस्तान से वही अच्छी चीजें ले सकते हैं।”
“पर जहांगीरी अंडा है क्या?”
“आप जानते होंगे कि एक कबूतर ने नूरजहां से जहांगीर का प्रेम कराया था जहांगीर के पूछने पर कि, मेरा एक कबूतर तुमने कैसे उड़ जाने दिया, नूरजहां ने उसके दूसरे कबूतर को उड़ा कर बताया था, की ऐसे।
उसके इस भोलेपन पर जहांगीर दिलो जान से निछावर हो गया उसी क्षण से उसने अपने को नूरजहां के हाथ कर दिया कबूतर का यह एहसास वह नहीं भूला उसके एक अंडे को बड़े जतन से रख लिया।
एक बिल्लौर की हांडी में वह उसके सामने टंगा रहता था बाद में वही अंडा “जहांगीरी अंडा”के नाम से प्रसिद्ध हुआ इसी को मेजर डगलस ने पारसाल दिल्ली में एक मुसलमान सज्जन से ₹300 में खरीदा।”
“यह बात?”
“हां, पर अब मेरे आगे दून की नहीं ले सकते। मेरा अकबरी लोटा उनके जहांगीरी अंडे से भी एक पुश्त पुराना है।”
“इस रिश्ते से तो आप का लोटा उस अंडे का बाप है।”
साहब ने लाला श्यामलाल को ₹500 देकर अपनी राह ली।
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लाला झामलाल का चेहरा इस समय देखते बनता था जान पड़ता था कि मुंह पर 6 दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी का एक एक बाल प्रसन्नता के मारे लहरा रहा है।
उन्होंने पूछा- “बिलवासी जी! मेरे लिए ढाई सौ रुपए घर से लेकर आए! पर आपके पास तो थे नहीं।”
“इस भेद को मेरे सिवाय मेरा ईश्वर ही जानता है आप उसी से पूछ लीजिए, मैं नहीं बताऊंगा!”
“पर आप चले कहां? अभी मुझे आपसे काम है 2 घंटे तक!”
“2 घंटे तक?”
“हां और क्या, अभी मैं आपकी पीठ ठोक कर शाबाशी दूंगा एक घंटा इसमें लगेगा। फिर गले लगाकर धन्यवाद दूंगा, एक घंटा इसमें भी लग जाएगा।”
“अच्छा पहले ₹500 गिन कर सहेज लीजिए!”
“रुपया अगर आपका हो, तो उसे समझना एक ऐसा सुखद मनमोहक कार्य है कि मनुष्य उस समय सहज में ही तन्मयता प्राप्त कर लेता है लाला श्यामलाल ने अपना कार्य समाप्त कर के ऊपर देखा पर बिलवासी जी इस बीच अंतर्धान हो गए।”
उस दिन रात्रि में बिलवासी जी को देर तक नींद नहीं आई। वे चादर लपेटे चारपाई पर पड़े रहे 1:00 बजे वे उठे धीरे, बहुत ही रे से अपनी सोई हुई पत्नी के गले से उन्होंने सोने की वह सिकड़ी निकाली जिसमें एक ताली बंधी हुई थी।
फिर उसके कमरे में जाकर उन्होंने उस ताली से संदूक खोला।
उसमें ढाई सौ के नोट ज्यों के त्यों रखकर उन्होंने उसे बंद कर दिया फिर दबे पांव लौट कर ताली को उन्होंने दुबारा अपनी पत्नी के गले में डाल दिया इसके बाद उन्होंने हंसकर अंगड़ाई ली दूसरे दिन सुबह 8:00 बजे तक चैन की नींद सोए।

-अन्नपूर्णानंद वर्मा

Originally published at https://www.anmolhindi.com.

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